कमल दल पर ठहरी
ओस की पारदर्शी
प्रच्छन्न बूंदों में ,
चेहरे की नमकीनियत में,
मिट्टी की नमी में,
मेहनत के पसीने में,
ठंडी छाछ में,
गन्ने के गुङ में,
माखन-मिसरी में,
मधुर गान में,
मुरली की तान में,
मृग की कस्तूरी में,
फूलों के पराग में,
माँ की लोरी में,
वीरों के लहू में,
मनुष्य के हृदय में
जो तरल होकर
बहता है,
उसे कहते हैं हम
कविता ।